एक समाचार के अनुसार हमारे देश के एक प्रतिष्ठत योगाचार्य को एक
विश्वविद्यालय ने सम्मानित करने की घोषणा की है।
इसमें हमारी कोई आपत्ति नहीं है पर आशंका लगती है कि आगे कहीं सम्मानित
करने वाली संस्थायें कहीं अपनी छवि चमकाने के लिये योगियों को सम्मान देकर भ्रमित
तो नहीं करेंगी। हमारी दृष्टि से जिस व्यक्ति से योगाचार्य की उपाधि स्वयं धारण की
हो उसे बाद में जनमानस ने स्वीकार भी कर लिया हो उसकी छवि फिर इस संसार में कोई
अन्य सम्मान,उपाधि और पुरस्कार नहीं चमका सकता।
अन्य सम्मान तो सांसरिक विषयों में कार्यरत शिखर पुरुष देते हैं वह योगी की
जनमानस में स्थापित छवि के पास धब्बे की तरह दिखाई दे सकती हैं भले ही वह सोने का
रूप क्यों न लिये हों।
हमारे देश में जनमानस के हृदय में सन्यासी और योगी की छवि इस तरह बसी है कि
उसके सामने राजकीय संस्थाओं, प्रतिष्ठित शैक्षणिक विश्वविद्यालयों और बड़े आर्थिक प्रतिष्ठानों के सम्मान
राजसी वृत्ति के कारण दिये जाने कारण फीके लगते हैं। आमतौर से यह सम्मान, उपाधियां, और पुरस्कार कथित समाज
सेवक को सेवा, व्यवसायिक फिल्मों के अभिनेताओं को कथित कला सेवा और कभी चाटुकारिता या
सामायिक लेखन से जुड़े लोगों साहित्य सेवा के नाम पर दिये जाते हैं। उनकी प्रतिष्ठा
जब कम हो जाती है या वह चर्चा में प्रभाव खो बैठते हैं तो फिर धर्म के क्षेत्र में
प्रतिष्ठत लोगों को इस भावना से दिये जाते हैं देने वाली संस्था का नाम चर्चित
हो। अध्यात्मिक ज्ञानी इस बात को जानते
हैं इसलिये कभी सम्मान की आशा न करते हैं न दिये जाने पर लेते हैं।
हमारे देश में योग का प्रभाव बढ़ रहा है। अनेक योगाचार्य
सक्रिय हैं जिन्हें इस तरह क सम्मान दिये जाने के प्रयास हो सकते है।
उन्हें इससे बचने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि उनकी जनमानस में जो छवि है वह
इससे छोटी भी हो सकती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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