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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, July 17, 2015

सपनों की अर्थी-हिन्दी कविता(sapanon ki arthi-hindi poem)


सपने जिनके टूटे
वह उनकी अर्थी सजाये
ज़माने को दिखा रहे हैं।

जज़्बातों के सौदागरों रखते
वादों में धोखे का जाल
सभी को सिखा रहे हैं।

कहें दीपकबापू सच्चाई से
मूंह छिपाते लोग
अंधेरे में चलाते तीर,
अपने कीमती पसीने से
बना देते चालाकों की  मुफ्त में खीर,
चले जो अपनी दम पर
जीत कर मनाया जश्न
दूसरों के भरोसे रखा काम
वह हारने वालों में नाम लिख रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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