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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, August 8, 2015

रंग पर नज़र-हिन्दी कविता(rang par nazar-hindi poem)


लोहे रबड़ कांच और
प्लास्टिक से युक्त ढांचे पर
रंग लग जाये
वहां कार खड़ी हो जाती है।

उतर जाये बेकार शब्द की
शिकार हो जाती है।

कहें दीपक बापू तस्वीरों के सामने
देखकर मन प्रसन्न हो जाता है
पीछे के खालीपन से
होते जब रुबरु
नज़र धिक्कार में खो जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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