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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, August 22, 2015

स्वार्थ की सुगंध-हिन्दी कविता(swarth ki sugandh-hindi poem)


गुड़ जैसी बात करते
भले ही कभी नहीं
गुड़ लाते।

सामने चेहरा देखकर
शब्दों का चारा डालते
तत्कल कान फेरकर मुड़ जाते।

कहें दीपक बापू जिंदगी के सफर में
कुछ लोग प्रतिदिन
कुछ रोज मिलते
पलों के लिये मन खिलते
आदत है इंसानों की
जहां स्वार्थ की सुगंध है
वहीं जुड़ जाते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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