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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, October 12, 2015

अपना ही घर नहीं लगता-हिन्दी कविता(Apna Hi Ghar Nahin Lagta-Hindi Kavita)


अक्टोबर में भी
मई जैसी गर्म हवाओं से
डर नहीं लगता।

रास्ते पर चलती
तेज गाड़ियों के बीच
जीने का डर नहीं लगता।

कहें दीपकबापू दुनियां में
गर्म हो गया वातावरण
सामानों के बीच
नहीं रहा जीवन मरण
कम हो कुछ तो घर अपना ही
घर नहीं लगता।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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