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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, October 22, 2015

शस्त्र से जीते जाते पत्थर, दिल ज्ञान से ही जीते जाते-दीपकबापू वाणी (Shastra se Patthar jeete, Dil gyan se hi jeete jate-DeepakBapuWani)


शब्द मोतियों का ग्रंथों में भंडार, अर्थ खरीदने न जायें बाज़ार।
दीपकबापू योग बुद्धि बनायें पारस, स्वर्ग तलाशते न घूमें लाचार।।
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वाणी से बरसे तीखे शब्द, ज्ञान का प्रमाण नहीं हो जाते।
दीपकबापू मंच के चुटकुले, सत्य के प्राण नहीं हो जाते।।
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हृदय में कंटक वाणी में फूल, दोहरेपन के झूले में इंसान रहे झूल।
दीपकबापू त्रिगुणमयी माया है, ज़मीन से सोने के साथ बसे धूल।।
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संवेदनाओं पर कर रहे शोध, हृदय में स्पंदन नहीं है।
दीपकबापू नीम के पेड़ सजे, दिखते पर चंदन नहीं है।।
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शस्त्र से जीते जाते पत्थर, दिल ज्ञान से ही जीते जाते हैं।
दीपकबापू डर कराये पूजा, प्यार से ही इंसान जीते जाते हैं।।
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बंदर से बना आदमी मुटिया गया, अब कलाबाजियां नहीं खा सकता।
दीपकबापू कौओं का मार छीना सुर, मीठे स्वर में गा नहीं सकता।।
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अर्थशास्त्र से अनर्थ का खेल, महंगाई मानते विकास का खेल।
दीपकबापू पायें पढ़ तोपची पद, क्या समझेंगे विनाश का खेल।।
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सुनने वाली भीड़ सामने खड़ी, लंबी जीभ भटक ही जाती है।
दीपकबापू बुलंदी का भ्रम बुरा, छोटी बुद्धि अटक ही जाती है।।
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सम्मान का खेल बहुत खेले हैं, काफीघर में डोसे भी बहुत पेले हैं।
दीपकबापू राजकाज बदला, खिलाड़ी भीड़ में अब खड़े अकेले हैं।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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