कोई घर नहीं मिलता
जहां दर्द का
बसेरा नहीं पाते।
भीड़ में मिलता नहीं
एक भी इंसान
इर्दगिद जिसके तनाव का
घेरा नहीं पाते।
कहें दीपकबापू घ्यान में
आनंद का मिले ऐसा प्रकाश
वैसा सवेरा भी नहीं पाते।
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हिन्दी और ट्विटर-व्यंग्य कविता
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हिन्दी में लेते चुटकी
कुछ मजा आता
अंग्रेजी में तुम
लिखने के मजे लूट लो
पाठक को नहीं भाता।
कहें दीपकबापू
ट्विटरिस्ट बंधुओ
हिन्दी टूल से लिखना
तुम्हें क्यों नहीं भाता।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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