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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, November 30, 2015

महंगाई से लाचार-हिन्दी कविता(Mahangai se lachar-HindiPoem)

इंसान से टूटी उम्मीद
काबलियत पर
सवाल उठाती है।

ताकत से पूजा भले ही होती
मगर दिल पर लगी ठेस
बवाल लुटाती है।

कहें दीपकबापू दौलतमंदों से
कमजोर जनता की
नाराजगी के खतरे बहुत
खुशियों के सौदे का दाम चुकाती
महंगाई से लाचार होते ही
बदले का जाल जुटाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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