इंसान से टूटी उम्मीद
काबलियत पर
सवाल उठाती है।
ताकत से पूजा भले ही होती
मगर दिल पर लगी ठेस
बवाल लुटाती है।
कहें दीपकबापू दौलतमंदों
से
कमजोर जनता की
नाराजगी के खतरे बहुत
खुशियों के सौदे का दाम
चुकाती
महंगाई से लाचार होते ही
बदले का जाल जुटाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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