कुछ पाने के लिये
दौड़ता है आदमी इधर से उधर
देने का ख्याल कभी उसके
अंदर नहीं आता
भरता है जमाने का सामान अपने घर में
पर दिल से खाली हो जाता
दूसरे के दिलों में ढूंढता प्यार
अपना तो खाली कर आता
कोई बताये कौन लायेगा
इस धरती पर हमदर्दी का दरिया
नहाने को सभी तैयार खड़े हैं
दिल से बहने वाली गंगा में
पर किसी को खुद भागीरथ
दौड़ता है आदमी इधर से उधर
देने का ख्याल कभी उसके
अंदर नहीं आता
भरता है जमाने का सामान अपने घर में
पर दिल से खाली हो जाता
दूसरे के दिलों में ढूंढता प्यार
अपना तो खाली कर आता
कोई बताये कौन लायेगा
इस धरती पर हमदर्दी का दरिया
नहाने को सभी तैयार खड़े हैं
दिल से बहने वाली गंगा में
पर किसी को खुद भागीरथ
बनने का ख्याल नहीं आता
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दीपक भारतदीप
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दीपक भारतदीप
2 comments:
सादर अभिवादन ,दीपक जी
अच्छी कविता पढ़ने को मिली . बधाई ....
परिचय का एक मुक्तक और एक कविता भेज रहा हूँ , देखिएगा
मुक्तक .......
हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की
हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की
हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है
हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की ...
एक कविता ..
चाहता हूँ ..
एक ताजी गंध भर दूँ
इन हवाओं में.....
तोड़ लूँ
इस आम्र वन के
ये अनूठे बौर
पके महुए
आज मुट्ठी में
भरूं कुछ और
दूँ सुना
कोई सुवासित श्लोक फ़िर
मन की सभाओं में
आज प्राणों में उतारूँ
एक उजला गीत
भावनाओं में बिखेरूं
चित्रमय संगीत
खिलखिलाते फूल वाले
छंद भर दूँ
मृत हवाओं मैं ..
डॉ.उदय 'मणि'कौशिक
umkaushik@gmail.com
हिन्दी की सार्थक और समर्थ रचनाओं के लिए देखें
http://mainsamayhun.blogspot.com
बढिया रचना है।
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