‘भारी मानसिक युद्ध में फंसा हूं
कोई उपाय बताईये
जंग है विश्वास की
उससे मुझे पार लगाईये
एक का निभाता हूं
दूसरे का किसी हालत में तोड़ना होगा विश्वास
इधर जाऊं समझ में नही आता
रास्ता कोई आप ही बताईये
आपके उपदेश पर ही है विश्वास’
गुरू ने कहा
‘किस माया के चक्कर में पड़े हो
उसके हैं तीन रूप धन, शक्ति और प्रतिष्ठा
पहले उसका स्वरूप बताओ
विश्वास की कभी जंग नहीं होती
हमारी बुद्धि की गली ही तंग होती
तभी हालत ऐसी आती है
सत्य की कोई परीक्षा नहीं है
जिस पर विश्वास है वह निभाएगा भी
पर माया में ही ऐसा होता है
इसलिये जहां माया मोल तोल में भारी हो
वहीं पहुंच जाओ
चाहे जितना माया का ढेर उठा लाओ
नैतिकता का मानदंड कोई
किसी किताब में नहीं लिखा
आज के लोगों में हमें भी कहीं वह नहीं दिखा
हम तो ठहरे निष्काम
हमें समझ में नहीं आता माया का काम
जिधर ले जाए वहीं होता विश्वास
जिसे नहीं मिलती वही होता निराश
जमाने को लगी है हवा ऐसी
धन और प्रतिष्ठा में
आदमी की बुद्धि का हो गया निवास
सत्य की राह पर चलते हो तो
अधिक सोचना नहीं
पर माया के रास्ते जाओ तो
कर लेना पहले कम और अधिक का आभास
रास्ते दो ही है इस दुनियां में
एक है सत्य का
दूसरा माया का
इस नियम पर करना विश्वास
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यह कविता मूल रूप से इस ब्लाग दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका पर प्रकाशित है। इसे अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं दी गयी है
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप
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