जो कोई नहीं कर सका वह गूगल का हिंदी अंग्रेजी टूल करा लेगा। वह काम हैं हिंदी के लेखकों से शुद्ध हिंंदी लिखवाने का। दरअसल आजकल मैं अपने वर्डप्रेस के शीर्षक हिंदी में कराने के लिये उसके पास जाता हूं। कई बार अनेक कवितायें भी ले जाता हूं। उसकी वजह यह है कि हिंदी में तो लगातार फ्लाप रहने के बाद सोचता हूं कि शायद मेरे पाठ अंग्रेजों को पसंद आयें। इसके लिये यह जरूरी है कि उनका अंग्रेजी अनुवाद साफ सुथरा होना चाहिये। अब हिट होने के लिये कुछ तो करना ही है। अब देश के अखबार नोटिस नहीं ले रहे तो हो सकता है कि विदेशी अखबारों में चर्चा हो जाये तो फिर यहां हिट होने से कौन रोक सकता है? फिर तो अपने आप लोग आयेंगे। तमाम तरह के साक्षात्कार के लिये प्रयास करेंगे।
इसलिये उस टूल से अनुवाद के बाद उनको मैं पढ़ता हूं पर वह अनेक ऐसे शब्दों को नकार देता है जो दूसरी भाषाओं से लिये गये होते हैं या जबरन दो हिंदी शब्द मिलाकर एक कर लिखे जाते हैं। इसका अनुवाद सही नहीं है पर जितना है वह अंग्रेजी में पढ़ने योग्य हो ही जाता है। उसकी सबसे मांग शुद्ध हिंदी है। उस दिन चिट्ठा चर्चा में एक शब्द आया था जालोपलब्ध। मैंने इसका विरोध करते हुए सुझा दिया जाललब्ध। इस टूल पर प्रमाणीकरण के लिये गया पर उसने दोनों शब्दों को उठाकर फैंक दिया और मैं मासूमों की तरह उनको टूटे कांच की तरह देखता रहा। तब मैंने जाल पर उपलब्ध शब्द प्रयोग किया तब उसने सही शब्द दिया-जैसे शाबाशी दे रहा हो। मतलब वह इसके लिये तैयार नहीं है कि तीन शब्दों को मिलाकर उसक पास अनुवाद के लिये लाया जाये।
इधर बहुत सारे विवाद चल रहे हैं। कोई कहता है कि हिंदी में सरल शब्द ढूंढो और कोई कहता है कि हिंदी में उर्दू शब्दों का प्रयोग बेहिचक हो। कोई कहता हैं कि उर्दू शब्दों में नुक्ता हो। कोई कहता है कि जरूरत नहीं। इन बहसों में हमारे अंतर्जाल लेखक-जिनमें मैं स्वयं भी शामिल हूं-इस बात पर विचार नहीं करते कि कुछ गूगल के हिंदी अग्रेजी टूल से भी तो पूछें कि उसे यह सब स्वीकार है कि नहीं।
आप कहेंगे कि इससे हमें क्या लेना देना? भई, हिंदी में भी अंतर्जाल पर लिखकर हिट होने की बात तो अब भूल जाओ। भाई लोग, अब बाहर के लेखकों के लिये क्लर्क का काम भी करने लगे हैं। उनकी रचनायें यहां लिख कर ला रहे हैं और बताते हैं कि उन जैसा लिखो। अब इनमें कई लेखक ऐसे हैं जिनका नाम कोई नहीं जानता पर उनको ऐसे चेले चपाटे मिल गये हैं जो उनकी रचनाओें को अपने मौलिक लेखन क्षमता के अभाव में अपना नाम चलाने के लिये इस अंतर्जाल पर ला रहे हैं। सो ऐसे में एक ही चारा बचता है कि अंतर्जाल पर अंग्रेजी वाले भी हिंदी वालों को पढ़ने लगें और अगर वह प्रसिद्धि मिल जाये तो ही संभव है कि यहां भी हिट मिलने लगें।
मैं यह मजाक में नहीं कह रहा हूं। यह सच है कि भाषा की दीवारें ढह रहीं हैं और ऐसे में अपने लिखे के दम पर ही आगे जाने का मार्ग यही है कि हम इस तरह लिखें कि उसका अनुवाद बहुत अच्छी तरह हो सके। हालांकि मैंने प्रारंभ में कुछ पाठ वहां जाकर देखे पर फिर छोड़ दिया क्योंकि उस समय कुछ अधिक हिट आने लगे थे। अब फिर वेैसी कि वैसी ही हालत हो गयी है और अब सोच रहा हूं कि पुनः गूगल के हिंदी अंग्रजी टूल पर ही जाकर अपने पाठ देखेंे जायें वरना यहां तो पहले से ही अनजान लेखकों को यहां पढ़कर अपना माथा पीटना पड़ेगा। अखबार फिर उन लेखकों और उनको लिखने वाले ब्लाग लेखकों के नाम छापेंगे। अगर अपना नाम कहीं विदेश में चमक जायेगा तो यहां अपने आप हिट मिल जायेंगे। वैसे भी यहां हिंदी वाले अंग्रेजी की वेबसाईटें देखना चाहते है और उनके लिये हिंदी में पढ़ना एक तरह से समय खराब करना है ऐसे में हो सकता है कि जब यहां प्रचार हो जाये कि अंग्रेजी वाले भी हिंदी में लिखे पाठों को पढ़ रहे है तब हो सकता है कि उनमें रुचि जागे। यहां के लोग विदेशियों की प्रेरणा पर चलते हैं स्वयं का विवेक तो बहुत बाद में उपयोग करते हैं।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
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3 years ago
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