आंखें देखना चाहती हैं सात समंदर पार
सोचता है मन
शायद वहां रौशनी अधिक होगी
वहां रोज रात को चांद की चमक होगी
मिलेगा यहां से ज्यादा सम्मान और प्यार
ख्यालों की नाव पर जब सवार
आदमी का मन हो जाता है
दोनों पांवों में अज्ञान का पहिया लग जाता है
उतर पड़ता है वह समंदर के अंधेरे में
कुछ पहुंचते हैं दूसरे किनारे तक
कुछ के नसीब में डूबना ही आता है
पहुंचते हैं जो उस पार
उनके मन को भी ऊबना आ जाता है
सोचते हैं
इंसान की बनाई कृत्रिम रौशनी तो
यहां बहुत है
जो ज्ञान चक्षुओं को कर देती है दृष्टिविहीन
पर सूरज और चांद की रौशनी
बराबर ही थी अपने यहां भी
जिसकी चाहत थी
वह न सम्मान मिला न प्यार
चैन और अमन भी कहां पाया
आकर सात समंदर पार
यादों में सताते अपने और यार
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3 comments:
जिसकी चाहत थी
वह न सम्मान मिला न प्यार
चैन और अमन भी कहां पाया
आकर सात समंदर पार
यादों में सताते अपने और यार
" bhut sunder abheevyektee, shee kha apna desh or apne logon kee yadein kaheen bhee peecha nahe chodtee, sat smander paar bhee chle aatee hain"
Regards
बहुत बढिया.
बहुत बढ़िया, नाम फिल्म का गाना याद आ गया।
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