दूसरे की गल्तियों को अपराध न बताओ
तुम्हारी आवाज को मिल गयी है
आजादी के साथ दौलत की ताकत
पर उस पर इतना न इतराओ
शिकायतों का पुलिंदा साथ लिये घूमते हो
पर अपनी गल्तियों को मजबूरी कहकर चूमते हो
नक्कारखाने से निकल आये हो
अपनी तूती में दूसरों के लिये
चुभने वाले तीर क्यों ढूंढते हो
अपनी कलम के तलवार हो जाने का जश्न न मनाओ
कब तब बहलाओगे
झूठ को सच बनाओगे
अपने दृष्टा होने के अहसास को
सृष्टा की तरह मत समझाओ
जमाने में कई लाचार है
जिनसे तुम्हारी तरह गल्तियां हो जाती हैं
पर छिपने के लिये वरदहस्त के अभाव में
सभी के सामने आ जाती हैं
उन पर तुम अपनी रोटी न पकाओ
जमाने में खून की होली खुले में खेलने वाले बहुत हैं
उनसे अपनी दृष्टि न छिपाओ
बढ़ सकते हैं उनके हाथ तुम्हारी तरफ भी
शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गरदन रेत में न छिपाओ
दूसरों की इज्जत से खेलने वाले खबरफरोशों
जब तक उसके पर्दे का सहारा है
लोग सह जाते हैं
अपना दर्द पी जाते हैं
तुम उन्हें मत डराओ
जमाना जब डरता है
तब ख्यालों से मरता है
कौम अगर शब्दों के शोर के आतंक तले
इस तरह मरती रही
तुम्हारी खबरें बेअसर हो जायेंगी
अनसुनी और अनदेखी कर दी जायेंगी
अपने आजादी के हथियार की धार को
बेजा इस्तेमाल कर उसे कुंद मत करो
नहीं तो फिर जुर्म पसंद दौलतमंदों के गुलाम हो जाओगे
समय से पहले चेत जाओ
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