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Sunday, September 26, 2010

चाटुकारिता-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (chatukarita-hindi vyangya kavitaen)

महंगाई ने इंसान की नीयत को
सस्ता बना दिया है,
पांच सौ और हजार के नोट
छापने के फायदे हैं
इसलिये एक बड़े नोट के साये ने
बदनीयत लोगों को खरीदकर
थोकबंद जमा कर दिया है।
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जिंदगी में सफलता के लिये
अब पापड़ नहीं बेलने पड़ते,
चाटुकारिता से ही बन जाती है चाट
बस, बड़े लोगों की दरबार में हाज़िर होकर
उनकी तारीफ में चंद शब्द कहीं ठेलने पड़ते।
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अपने हाथों से ही सजा देना अपनी छबि
इंसान खो चुके हैं पहचान अच्छे बुरे की।
अपने आप बन रहे सभी मियां मिट्ठू
तारीफों में परोसते बात ऐसी, जो लगे छुरे की।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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