सुनते थे
शहीदों की चिता पर लगेंगे मेले,
नाचेंगे जहां आज़ादी के अलबेले,
मगर अब कहीं गैस एजेंसी तो
कहीं पेट्रोल पर उनके नाम पर बन जाते हैं,
कहीं ऊंची इमारतों में आवास भी तन जाते हैं।
उनकी विधवाओं और बच्चों को
मिलना हो बसेरा,
आम आदमी को भी हो जाता वहीं फेरा,
यह अलग बात है,
खास आदमी वहां भी हक
अपने नाम से मार जाते हैं,
शहीदों की चिता पर मनाते दिखावे का शोक,
मगर अपनी लालच पर नहीं रखते रोक,
बना देते उनका भूला हुआ आदर्श चरित्र
खुद ओढ़ लेते आम आदमी की चादर,
मुश्किल है समझना
आम आदमी फिर कौन कहलाये जाते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
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3 years ago
1 comment:
BAHUT SUNDAR .
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