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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, November 1, 2010

वासना कभी प्रेम नहीं होती-हिन्दी कविताऐं (vasna kabhi premi nahin hoti-hindi kavitaen)

ज़माने को बदलकर रख देंगे, यह ख्याल अच्छा है,
जो सोचता है यह इंसान, उसका दिमाग बच्चा है।
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भीड़ का इंतजार न करें, अपनी राह चलते रहें।
खुद की जंग खुद लड़ो, भेड़ों के झुंड से बचते रहें।
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तरक्की के रास्ते चमकदार हैं, पर तबाही की तरफ भी जाते हैं।
कपड़े कितने भी सफेद हों, चरित्र के दाग नहंी छिप पाते हैं।
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वासना कभी प्रेम नहीं होती, यह आग जला कर बनाती राख।
शरीर के जख्म देखे ज़माना, आंखें रोती देखकर डूबती साख।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

Apanatva said...

bahut acche sandesh detee rachana prabhavit kar gayee.......

saty vachan se kum nahee....

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