समाज सेवक ने अपने चेले को
बुलाकर डांटते हुए कहा
‘‘ यह अखबार में मैंने खबर पढ़ी है
तुम्हारी बीवी भ्रष्टाचार के विरोध में
चौराहे पर आंदोलन लिये खड़ी है,
उसे जाकर बताना
मेरे ही दम पर तुम्हारी रोटी बनाने वाली आग जल रही है
मेरे ही पैसे से खरीदे मेकअप के सामान से
उसकी खूबसूरत शक्ल पल रही है,
उससे कहो भ्रष्टाचार का विरोध छोड़कर,
आंदोलनकारियों से नाता तोड़कर,
अपना घर संभाले
या फिर यहां से होकर विदा तुम संभालो।’
चेला बोला
‘महाराज,
लगता है कि
आप नयी राजनीति समझ नहीं पाये,
इसलिये आपके विरोधी सभी जगह छाये,
आजकल भ्रष्टाचार का विरोध बन गया फैशन,
नहीं उसका रिश्वत रोकने से कोई कनेक्शन,
इधर समाज सेवा संभालने के लिये
पैसा जरूरी है
तो गरीब से भी नहीं रखना दूरी है,
अगर समाज पर काबू रखना है,
प्रसिद्धि और पैसे की मलाई चखना है,
तो आम लोगों के लिये
भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन चलाकर
उनका मन भी बहलाना है,
अपनी हरकतें छिपाने के लिये
उनका समर्थन करने का भी करना जरूरी बहाना है,
कुछ ईमानदार दिखने वाले चेहरे
आंदोलन में सजाये गये हैं,
सोच से पैदल हैं पर विद्वान बताये गये हैं,
मैं आपका सेवक हूं वहां नहीं जा सकता,
वरना मेरे साथ आपका भी नाम
बदनामी की दलदल में फंसता,
इसलिये बीवी को वहां भेजकर
आपका अस्तित्व वहां बचाया है,
इससे हम चाहे जैसे आंदोलन को मोड़ देंगे
मन में आया तो तोड़ देंगे,
इसलिये आप बेफिक्र रहो
अपना घर भी भरते रहो, हमें भी पालो।’’
‘‘ यह अखबार में मैंने खबर पढ़ी है
तुम्हारी बीवी भ्रष्टाचार के विरोध में
चौराहे पर आंदोलन लिये खड़ी है,
उसे जाकर बताना
मेरे ही दम पर तुम्हारी रोटी बनाने वाली आग जल रही है
मेरे ही पैसे से खरीदे मेकअप के सामान से
उसकी खूबसूरत शक्ल पल रही है,
उससे कहो भ्रष्टाचार का विरोध छोड़कर,
आंदोलनकारियों से नाता तोड़कर,
अपना घर संभाले
या फिर यहां से होकर विदा तुम संभालो।’
चेला बोला
‘महाराज,
लगता है कि
आप नयी राजनीति समझ नहीं पाये,
इसलिये आपके विरोधी सभी जगह छाये,
आजकल भ्रष्टाचार का विरोध बन गया फैशन,
नहीं उसका रिश्वत रोकने से कोई कनेक्शन,
इधर समाज सेवा संभालने के लिये
पैसा जरूरी है
तो गरीब से भी नहीं रखना दूरी है,
अगर समाज पर काबू रखना है,
प्रसिद्धि और पैसे की मलाई चखना है,
तो आम लोगों के लिये
भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन चलाकर
उनका मन भी बहलाना है,
अपनी हरकतें छिपाने के लिये
उनका समर्थन करने का भी करना जरूरी बहाना है,
कुछ ईमानदार दिखने वाले चेहरे
आंदोलन में सजाये गये हैं,
सोच से पैदल हैं पर विद्वान बताये गये हैं,
मैं आपका सेवक हूं वहां नहीं जा सकता,
वरना मेरे साथ आपका भी नाम
बदनामी की दलदल में फंसता,
इसलिये बीवी को वहां भेजकर
आपका अस्तित्व वहां बचाया है,
इससे हम चाहे जैसे आंदोलन को मोड़ देंगे
मन में आया तो तोड़ देंगे,
इसलिये आप बेफिक्र रहो
अपना घर भी भरते रहो, हमें भी पालो।’’
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
4.दीपकबापू कहिन
५.ईपत्रिका
६.शब्द पत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८,हिन्दी सरिता पत्रिका
९शब्द योग पत्रिका
१०.राजलेख पत्रिका
No comments:
Post a Comment