मुंबई में संपन्न विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता 2011 के फायनल या अंतिम मुकाबले में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की टीम की जीत पर नकली कप दिया जाना कोई बिना सोची समझी बात नहीं थी अब इस पर विश्वास करना कठिन है। कप लाने वाले जानते थे कि उसे कस्टम वाले रोक लेंगे। अधिकारियों के टीवी चैनलों पर दिये गये बयान की बात माने तो उसे वापस लेने के कोई प्रयास नहीं किये गये। उनको शुल्क मुक्त के लिये कोई आवेदन भी नहीं मिला। आईसीसी का बयान है कि उस नकली कप को अब वह दुबई में अपने मुख्यालय ले जायेगी। इसका मतलब कि कोई ऐसी चाल है जिसका पता नहीं चल पा रहा।
यह सही है कि वह कप भारत में नहीं रहना था। केवल प्रतीक के रूप में कप्तान को दिया जाना था। यह नियम भी है कि असली कप एक बार कप्तान अपने हाथ में लेता है और अपने खिलाड़ियों से मिलकर फोटो खिंचवाता है। फिर उसे वापस करने दूसरा कप दिया जाता है जो विजेता देश के पास रह जाता है। जो कप मिल गया वही मिलना था पर सवाल है कि औपचारिकता क्यों नहंी निभाई गयी?
इस विषय पर लिखे गये लेख का सर्च इंजिन पर पीछा करते हुए गये तो पता चला कि पाकिस्तान के कुछ लोगों ने एसएमएस अभियान चला रखा है। मतलब वहां खुशी का माहौल है कि भारतीयों को नकली कप मिला। वह निहायत मूर्ख हैं, उनको यह मालुम नहीं कि यह घटना भी उनको खुश करने के लिये प्रायोजित की गयी हो सकती है। पाकिस्तान सेमीफायनल में भारत से हारा जो कि विश्वकप मुकाबलों में उसकी पांचवीं हार है। बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता का मैच जोड़ा जाये तो यह उनकी छठवीं हार है। अब यह अलग बात है कि वह स्वयं अपने खिलाड़ियों पर ही हार फिक्स करने का आरोप लगाते हैं। यह नकली कप भी फिक्सिंग का मामला लगता है। यह असली है या नकली यह अलग विषय है पर पाकिस्तान की हार एक सच है जो वहां के लोगों को माननी ही पड़ेगी।
आईसीसी का मुख्यालय दुबई में हैं जहां के शिखर पुरुषों की पाकिस्तान से हमदर्दी जगजाहिर है। पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधियों को मिलने वाला उनका संरक्षण भी किसी से छिपा नहीं है। क्रिकेट को काला करने में दुबई के धनपतियों का हाथ रहा है और भारत इसी कारण उनके यहां मैच नहीं खेलता। कहीं न कहीं यह बात दुबई के धनपतियों को अखरती है। फिर पाकिस्तान में बैठे कुछ लोगों को भारत की हार से चिंता है क्योंकि वह भारत विरोध के कारण ही वहां रह रहे हैं। कहीं न कहीं क्रिकेट की फिक्सिंग में भी उनका नाम आता है। ऐसे में संभव है कि गोरे अंग्रेजों के साथ मिलकर उन्होंने भारत की खिल्ली उड़ाने की यह घटिया योजना बनाई हो हालांकि इससे इतिहास पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत का विश्व कप जीतना उनके लिये असहनीय घटना है। फिर क्रिकेट का भारत सबसे बड़ा धनदाता है पर धनपतियों के तार कहीं न कहीं दुबई और पाकिस्तान से भी निकलते हैं।
यकीनन यह प्रचार में स्कोर का मामला है। इस विश्व कप में पाकिस्तान पिट गया, संयुक्त अरब अमीरात की टीम को शामिल होने का अवसर ही नहीं मिला। दुबई में धनपतियों को अपने दो नंबर के धंधे चलाने हैं। सो यह दुबई और पाकिस्तान के लोगों को खुश करने के लिये किया गया नाटक लगता है कि भारत को नकली कप थमा दिये जाने का समाचार रचा गया। सच यह है कि इसे नकली कप नहीं कहा जा सकता। मिलना तो यही था अलबत्ता औपचारिकता वश आईसीसी का मूल कप न दिया जाना अच्छी बात नहीं है। मगर यह इतनी भी नहीं कि इसे तूल देकर विरोधियों को खुश किया जाये। अलबत्ता असली बात सामने नहीं आ पायेगी क्योंकि हमारे देश में क्रिकेट और उसका व्यापार अलग अलग अभी तक नहीं माने गये पर सच यही है कि क्रिकेट के व्यापारी सभी को खुश रखने का प्रयास कर रहे हैं। व्यापारी आदमी सभी को खुश करता है। वह यहां भी देता है वहां भी देता है। यहां भी लोगों को खुश करता है वहां भी करता है। पाकिस्तान के लोगों को हिन्दी देवनागरी नहीं आती और हम रोमन में लिखने वाले नहीं है जैसा कि वह लिख रहे हैं। वह हम पर हंस सकते हैं पर ऐसा करके हमेें भी अपने पर हंसने का अवसर दे रहे हैं। अगर कोई पाकिस्तानी इसे रोमन में पढ़े तो यह जान ले कि इस पाठ का लेखक प्रतिदिन सुबह हास्यासन करता है और अगले कुछ दिन तक पाकिस्तानी एक विषय रहेंगे। वैसे उन्हें भी खुश होने का हक है भले ही वह नकली कारण से क्यों न हो?
------------------
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
4.दीपकबापू कहिन
५.ईपत्रिका
६.शब्द पत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८,हिन्दी सरिता पत्रिका
९शब्द योग पत्रिका
१०.राजलेख पत्रिका
No comments:
Post a Comment