पटाखों के शोर से
फटते कान,
धुऐं से जलती आंखें,
प्रदूषित हवा से भरती हुई छाती
दीपावली के उत्साह में
दिल अब ज्यादा
साथ नहीं देता
पीड़ाओं के बीच खुशी कहीं
खो जाती है।
कहें दीपक बापू
कोई ऐसा दीपक जलाओ
जिससे अंदर का अंधेरा मिट जाये
ऐसे जश्न मनाने से कोई फायदा नहीं
जिससे अपनी तबियत बिगड़े
हम कोई मोर नहीं
नाचने के बाद
अपने पांव देखकर
जिसकी सूरत रोनी हो जाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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