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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 2, 2013

इस संसार में सभी लोग एक जैसे नहीं होते-हिन्दी चिंत्तन लेख(is sansar mein sabhi log ek jaise nahin hote-hindi chinntan lekh)



                        अभी हाल ही में कुछ प्रसिद्ध लोगों के यौन प्रकरणों तथा बलात्कार के आरोपों पर भारतीय प्रचार माध्यमों ने इतना शोर मचाया है जैसे लगता है कि यहां इस देश में बस केवल यही हो रहा है।  टीवी चैनलों पर जमकर बहसें हो रही हैं।  पुरुषों की मानसिकता पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। कुछ महिला विद्वान तो यह मानने को ही तैयार ही नहीं है कि कोई भला आदमी इस संसार में भी हो सकता है।  बड़े शहरों में रहने वाली इन महिला विद्वानों  पर प्रगतिशील तथा जनवादी विचाराधाराओं का ऐसा प्रभाव है कि उन्हें भारतीय अध्यात्म के संदर्भों का ज्ञान देना ही बेकार है। भारतीय अध्यात्म में इस संबंध में अनेक प्रकार की बातें कही गयी है।
            सच बात तो यह है कि कोई पुरुष बलात्कार के आरोपों से घिरता है तो उसे अत्यंत निकृष्ट माना जाता है। यहां तक कि अपराध जगत के लोग भी इसे घिनौना आरोप मानते हैं। कुछ लोग बताते हैं कि जेलों में चोर तथा बलात्कार के आरोपियों को अन्य कैदी अत्यंत कमजोर मानते हुए उनका उपहास उड़ाते हैं।  टीवी पर जब बहस होती है तो ऐसा लगता है कि जैसे हर पुरुष मौका पड़ने पर यौन दुराचार के लिये तैयार हो जाता है। यह भ्रम है।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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वैराग्ये सञ्चरत्येको नीतौ भ्रमति चापरः।
श्रृङ्गरे रमते कश्चिद् भुवि भेदाः परस्परम्।।
            हिन्दी में भावार्थ-इस संसार में सभी लोग एक जैसे नहंी है। सभी की रीति नीति प्रथक प्रथक हैं। कोई वैराग्य में रत है तो कोई नीतिशास्त्र के अनुसार जीवन जीता है तो कोई काम के अधीन होकर श्रृंगार रस में डूबा रहता है।
            आजकल खुली बाज़ार व्यवस्था ने जहां कथित रूप से जिस विकास का दावा किया जाता है वही ऐसे अपराधों की जननी भी है जिनकी कल्पना आज से कुछ वर्ष पूर्व तक नहीं की जाती थी।  अपराध विशेषज्ञों के अनुसार महिलाओं के प्रति अपराध आमतौर से उनके निकटस्थ लोग ही करते हैं। इस तथ्य पर कोई महिला विद्वान ध्यान नहीं देती और बिना वजह पुरुषवादी मानसिकता को कोसती हैं।  इस संसार में सभी प्रकार के लोग हैं।  यह अलग बात है कि कुछ अपराधिक घटनायें समाज में सनसनी फैलाती हैं पर यहां यह भी याद रखने लायक हैं कि देश की बढ़ती आबादी में बेरोजगारी, महंगाई तथा असुरक्षा के वातावरण में यौन अपराधों का बढ़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।  लोग कड़े कानून बनाने की मांग तो करते हैं पर उसे लागू करने वाली व्यवस्था पर किसी का ध्यान नहीं जाता। जबकि अगर हम देखें तो समस्या यह नहीं है कि कानून कड़े नहीं है वरन् कहीं न कहीं हम ऐसी व्यवस्था को अपनाये हैं जो उस ढंग से काम नहीं कर पा रही जैसी की हम अपेक्षा करते है।



लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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