हरि हीरा, जन जौहरी, ले ले मौड़ी हाटि
जबर मिलेगा पारिषी तब हरि हीरा की साटि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हरि ही हीरा है और जौहरी है हरि का भक्त। हीरे को हाट-बाजार में बेच देने के लिए उसने दूकान लगा रखी है। वहीं और तभी उसे कोई उसे खरीद सकेगा।
पदारथ पेलि करि, कंकर लिया हाथि
जोड़ी बिछ्टी हंस की, पडया बगां के साथि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अनमोल पदार्थ जो मिल गया उसे तो छोड़ दिया और कंकड़ हाथ में ले लिया। हंसों के साथ से बिछुड़ गया और बगुलों के साथ हो लिया।
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