सबैं रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और न कोई
तिल इक घटमैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी रसायनों का सेवन कर लिया मैंने मगर हरि-रस जैसी कोई और रसायन नहीं पाई। एक तिल भी घट में शरीर में यह पहुंच जाए तो वह सारा ही कंचन में बदल जाता है।
'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई
सिर सौंपे सोई पिये, नहीं तौ पीया न जाई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गए हैं, पर इस मदिरा को कोई एक ही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को प्रसन्नता के साथ सौंप देगा।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
बहुत खूब,पढ़कर अच्छा लगा , आभार !
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