सबैं रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और न कोई
तिल इक घटमैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी रसायनों का सेवन कर लिया मैंने मगर हरि-रस जैसी कोई और रसायन नहीं पाई। एक तिल भी घट में शरीर में यह पहुंच जाए तो वह सारा ही कंचन में बदल जाता है।
'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई
सिर सौंपे सोई पिये, नहीं तौ पीया न जाई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गए हैं, पर इस मदिरा को कोई एक ही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को प्रसन्नता के साथ सौंप देगा।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
-
रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
---
हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
1 comment:
बहुत खूब,पढ़कर अच्छा लगा , आभार !
Post a Comment