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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, February 21, 2008

मनुस्मृति: आसक्ति रहित लोग ही हो सकते हैं धर्मोपदेशक

१.धर्मोपदेश देने का विधान उन्हीं लोगों के लिए है जो अर्थ और काम में आसक्त नहीं है। जो व्यक्ति विषयों में आसक्ति रखता उसकी धर्म में रूचि हो ही नहीं सकती और होगी तो दिखावे की। धर्म तत्व को जानने के इच्छुक लोगों के लिए धर्म ग्रंथों का ज्ञान ही सर्वोच्च प्रमाण है।
२.वेदों में जहाँ दो कथनों में विरोध हो वहाँ विद्वान लोगों को बराबर महत्व देते हुए उचित निर्णय लेना चाहिए।
३.धर्म के चार लक्षण हैं-१.वेदों द्वारा प्रतिपादित २. स्मृतियों द्वारा अनुमोदित ३. महर्षियों द्वारा आचरित 4. जहाँ किसी विषय में एक से अधिक मत हों वहाँ उस धर्म को अपनाने वाले व्यक्ति की आत्मा को प्रिय। इन कसौटियों पर सिद्ध होने वाला ही प्रामाणिक धर्म है।

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