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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, February 26, 2008

संत कबीर वाणी: गले में माला डालने से हरि नहीं मिलते

मैं-मैं बड़ी बलाइहै सकै तो निकसौ भाजि

कब लग राखु हे सखी, रुई लपेटी आगि

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यह मैं-मैं बहुत बड़ी बला है। इससे निकलकर भाग सको तो भाग जाओ, अरी सखी रुई में आग को लपेटकर तू कब तक रख सकेगी।

'कबीर'माला मन की, और संसार भेष

वाला पहरयां हरि मिलै तो अरहट कई गलि देखि

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सच्छी माला ही अचंचल मन की है बाकी तो संसारी भेष है। मालाधारियों का यदि माला पहनने से हरि मिलना होता तो रहटको देखो हरि से क्या उसकी भेंट हो गई। उसने तो इतने बड़ी माला गले में डाली।

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