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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, October 1, 2014

चेतना और जाग्रति-हिन्दी व्यंग्य कविता(chetna aur jagrati-hindi vyangya kavita)





सुख सुविधाओं के गुलाम
ज़माने में बदलाव लाने के
नारे लगाते हैं।

अपनी चेतना रख दी गिरवी
राजमहलों में रहकर
पूरे समाज को वही जगाने आते हैं।

कहें दीपक बापू हाथ की सफाई में
महारत जिन्होंने हासिल कर लिया,
वही रोशनी का वादा करते
रखकर सड़क पर खाली दिया,
रौशनी का चलाते काला बाज़ार
गलियों में प्रकाश करने का
दावा वही जताते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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