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Monday, January 27, 2014

अपना चंदन रहें खुद घिसते-हिन्दी व्यंग्य कविता(apna chandan rahen ghiste-hindi vyangya kavita)



लगता है ख्वाब में आयेंगे आसमान  से फरिश्ते,
निभायेंगे बिना मिन्नत किये हमसे अपने रिश्ते।
कहें दीपक बापू
हर पल जंग लड़ना ही  जिंदगी की सच्चाई है,
भले ही पलायन करने की कसम हमने खाई है,
बहुत आशिक कर चुके चांद तारे जमीन पर लाने के इरादे,
आकाश मुस्करा रहा है सदियों से सुनकर झूठे वादे,
सपने देखना अब बंद कर दिया लोगों ने,
खरीद रहे दूसरे की सोच घेरा दिमागी रोगों ने,
सभी के घर भरे दुनियां भर के सामानों से,
फिर भी ख्वाहिशों के झुंड के लिये फिर रहे अरमानों से,
दिल बहलाने के लिये भटकते लोगों का समझाना कठिन है
 अक्लमंदों के लिये ठीक यही कि अपना चंदन रहें खुद घिसते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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