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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, January 9, 2008

विदुर नीति:वही पंडित कहलाता है.........

  • अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान , उद्योग, दु:ख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता- ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से च्युत नहीं करते वही पंडित कहलाता है।
  • जो अच्छे कर्मों का सावन करता और बुरे कर्मों से दूर रहता है साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण है।
  • क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता तथा अपनी पूज्य होने की अनुभूति ये भाव जिसको पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पंडित कहलाता है।
  • दूसरे जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते, बल्कि काम पूरा होने पर ही जानते हैं वही पंडित कहलाता है।
  • सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, संपति अथवा दरिद्रता ये जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते वही पंडित कहलाता है।
  • जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरुषार्थ का ही वरण करता है वही पंडित कहलाता है।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

दीपक जी,विदुर निति से बहुत बढिया विचार प्रेषित किए हैं।आभार।

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