- अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान , उद्योग, दु:ख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता- ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से च्युत नहीं करते वही पंडित कहलाता है।
- जो अच्छे कर्मों का सावन करता और बुरे कर्मों से दूर रहता है साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण है।
- क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता तथा अपनी पूज्य होने की अनुभूति ये भाव जिसको पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पंडित कहलाता है।
- दूसरे जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते, बल्कि काम पूरा होने पर ही जानते हैं वही पंडित कहलाता है।
- सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, संपति अथवा दरिद्रता ये जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते वही पंडित कहलाता है।
- जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरुषार्थ का ही वरण करता है वही पंडित कहलाता है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
दीपक जी,विदुर निति से बहुत बढिया विचार प्रेषित किए हैं।आभार।
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